ग़जल-जिन्दगी से क्या गिला

अनमना-सा मन है, पीड़ा है अनकही
तुमको क्या,करते रहो तुम अपनी बतकही

भुला दिया था जिसको हमने बरसों पहले
आज क्यूँ उसकी याद आँखों से आंसू बनके बही

फिर से याद आई है अपनी इज़हार-ए-मोहब्बत
और उसके होठों से निकली रुंधी-सी 'नहीं'

उसको अपनी जिन्दगी से तो निकाल दिया
मगर उसकी यादें दिल में घर करके रही

जिन्दगी में जो मिला हंसकर के लिया
ख़ुशी मिली  तो भी अच्छा,गम मिला तो भी सही.

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