निराला की याद में
बसंत पंचमी माँ शारदे की पूजा का पवन त्यौहार होने के साथ हिंदी के महानतम कवियों में एक महाप्राण महाकवि निराला का जन्मदिन भी है. महाप्राण निराला को याद करते हुए आज के दिन मैंने जो कविता लिखी है उसे आप सबों की सेवा में पेश कर रहा हूँ. बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की शुभ्र शुभकामनाएँ.
महाप्राण
कितना सोच समझ कर चुना था
अपने लिए निराला उपमान
कविता ही नही जिन्दगी भी
निराली जियी
अपरा, अनामिका से
कुकुरमुत्ते और नए पत्ते तक की
काव्य यात्रा में ना जाने
कितने साहित्य-शिखरों को लांघ
हे आधुनिक युग के तुलसीदास
जीवन भर करते रहे तुम राम
की तरह शक्ति की आराधना
अत्याचारों के रावण के नाश के लिए
राम को तो शक्ति का वरदान मिला
तुम कहो महाकवि
तुमको क्या मिला?
जीवन के अंतिम
विक्षिप्त पलों में
करते रह गए गिला
की मैं ही वसंत का अग्रदूत
जीवन की त्रासदियों से जूझते
कहते रहे तुम-
"स्नेह निर्झर बह गया है
रेत ज्यों तन रह गया है."
हे महाकवि, हर युग ने
अपने सबसे प्रबुद्ध लोगों को
सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया है
सबसे ज्यादा दुःख दिए हैं उन्हें
तुम्हे दुःख देने में तो
दुनिया के साथ विधाता भी
नही रहे पीछे
पहले प्रिय पत्नी और फिर पुत्री
'सरोज की करुण स्मृति
नम करती आई है तुम्हारी कविताओं को
करुण रस से नही आंसुओं से.
इतने दुःख को झेला
फिर भी अपने अक्खड़-फक्कड़
स्वाभाव को छोड़ा नही
अपनी शर्तों पर जियी जिन्दगी
दुनिया छलती रही तुम्हे
और तुम दुनिया को ललकारते रहे.
गुलाबों को, अट्टालिकाओं को, धन्ना सेठों को
चेतावनी देते रहे
कुकुरमुत्तों, पत्थर तोड़ने वाली, कृषकों
और भिक्षुक की तरफ से
महाकवि, हे महाप्राण
तुम्हारी विद्रोही चेतना का
एक अंश भी पा जाये तो
धन्य हो उठे जीवन.
तुम्हारे जन्मदिन पर हे कविगुरु,
तुम्हे नमन.
महाप्राण
कितना सोच समझ कर चुना था
अपने लिए निराला उपमान
कविता ही नही जिन्दगी भी
निराली जियी
अपरा, अनामिका से
कुकुरमुत्ते और नए पत्ते तक की
काव्य यात्रा में ना जाने
कितने साहित्य-शिखरों को लांघ
हे आधुनिक युग के तुलसीदास
जीवन भर करते रहे तुम राम
की तरह शक्ति की आराधना
अत्याचारों के रावण के नाश के लिए
राम को तो शक्ति का वरदान मिला
तुम कहो महाकवि
तुमको क्या मिला?
जीवन के अंतिम
विक्षिप्त पलों में
करते रह गए गिला
की मैं ही वसंत का अग्रदूत
जीवन की त्रासदियों से जूझते
कहते रहे तुम-
"स्नेह निर्झर बह गया है
रेत ज्यों तन रह गया है."
हे महाकवि, हर युग ने
अपने सबसे प्रबुद्ध लोगों को
सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया है
सबसे ज्यादा दुःख दिए हैं उन्हें
तुम्हे दुःख देने में तो
दुनिया के साथ विधाता भी
नही रहे पीछे
पहले प्रिय पत्नी और फिर पुत्री
'सरोज की करुण स्मृति
नम करती आई है तुम्हारी कविताओं को
करुण रस से नही आंसुओं से.
इतने दुःख को झेला
फिर भी अपने अक्खड़-फक्कड़
स्वाभाव को छोड़ा नही
अपनी शर्तों पर जियी जिन्दगी
दुनिया छलती रही तुम्हे
और तुम दुनिया को ललकारते रहे.
गुलाबों को, अट्टालिकाओं को, धन्ना सेठों को
चेतावनी देते रहे
कुकुरमुत्तों, पत्थर तोड़ने वाली, कृषकों
और भिक्षुक की तरफ से
महाकवि, हे महाप्राण
तुम्हारी विद्रोही चेतना का
एक अंश भी पा जाये तो
धन्य हो उठे जीवन.
तुम्हारे जन्मदिन पर हे कविगुरु,
तुम्हे नमन.
टिप्पणियाँ
Click Here
Click Here
Click Here
Click Here
Click Here
Click Here